तिब्बत जैसा भूकंप मचा सकता है बड़ी तबाही, वैज्ञानिक शोध में हुआ खुलासा
तिब्बत में आए भूकंप के अलग पैटर्न का भूकंप देश में बड़ी तबाही मचा सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक आमतौर पर भूकंप की तरंगें पूरब से पश्चिम की ओर जाती हैं। वहीं तिब्बत में आए भूकंप की तरंगें उत्तर से दक्षिण की ओर गईं, जोकि बड़ी चिंता का विषय है। इस प्रकार के भूकंप भारत के हिमालयी क्षेत्र में भविष्य में बड़ी तबाही मचा सकते हैं।
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तिब्बत में मंगलवार सुबह आए बड़े भूकंप ने भारी तबाही मचा दी थी। तिब्बत में आए भूकंप की तीव्रता 7.1 आंकी गई थी। करीब डेढ़ सौ लोगों ने उस भूकंप में जान गंवाई थी।
Wadia Institute of Himalayan Geology
के वैज्ञानिकों के शोध में भूकंप के बदले पैटर्न को लेकर जो नया खुलासा हुआ है, वह काफी चिंताजनक है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आमतौर पर भूकंप की तरंगें पूरब से पश्चिम की ओर जाती हैं। जबकि तिब्बत में आए भूकंप की तरंगें उत्तर से दक्षिण की ओर गईं थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालयी रीजन में दक्षिण की ओर आबादी ज्यादा होने के कारण इस पैटर्न के भूकंप अत्यंत विनाश कर सकते हैं। 50 साल बाद आए इस प्रकार के पैटर्न वाले भूकंप चिंता का विषय बन गया है। लिहाजा वैज्ञानिकों ने इस प्रकार के भूकंपों को लेकर अधिक जागरुकता और सतर्कता की सलाह दी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक हिमालय के भूगर्भ में इंडियन-यूरेशियन प्लेट की टेक्टोनिक बाउंड्री 25 से 30 किलोमीटर गहराई पर है, जिसमें इस समय रिसेटलमेंट चल रहा है। वैज्ञानिक मानते हैं कि अगले दो-तीन माह तक इस स्तर के भूकंप आए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
1975 में आया था ऐसा भूकंप
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के अध्ययन में तिब्बत के भूकंप का पैटर्न हिमालय के बाकी भूकंपों के मैकेनिज्म से कुछ अलग दिखा। ‘मैकेनिज्म’ अर्थ भूकंप के कारणों और प्रक्रिया से है। मसलन भूकंप के लिए जिम्मेदार टेक्टोनिक प्लेट की गति और उनके बीच की जटिलताएं। वैज्ञानिकों के मुताबिक पिछले दो दिनों में भूकंप की दो गतिविधियों को छोड़कर ज्यादातर हलचल 05 से 15 किमी की गहराई में हुई हैं। तिब्बती क्षेत्र में भूकंप की ताजा गतिविधि उत्तर से दक्षिण की ओर पाई गई है। किन्नौर में 1975 में आए 6.8 तीव्रता के भूकंप की तरंगें उत्तर से दक्षिण दिशा में फैली थीं, जो कौरिक चांगो फॉल्ट जोन की दिशा से मेल खाती हैं। यह इलाका तिब्बत की सीमा से लगता हुआ है, जो इसे भूकंप के लिए अधिक संवेदनशील बनाता है।